मप्र के चंबल अंचल में रॉबिन हुड के नाम से ख्यात रहे पूर्व दस्यु सरदार मोहर सिंह गुर्जर का मंगलवार सुबह 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उप्र व राजस्थान से सटे चंबल के बीहड़ों में 1958 से 1972 तक उन्होंने बागी जीवन जिया। उन्होंने 37 साल की उम्र में समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण की प्रेरणा से आत्म-समर्पण कर दिया था। उन पर 80 हत्याओं के मामले समेत 350 आपराधिक केस थे। बागी रहते हुए मोहर सिंह ने गरीब बेटियों की शादी कराई। गरीबों की मदद की। मोहर सिंह मेहगांव नगर परिषद के निर्विरोध अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
92 वर्षीय पूर्व दस्यु सरदार मोहर सिंह पंचतत्व में विलीन
मेहगांव के मुक्तिधाम में मंगलवार दोपहर उनका अंतिम संस्कार हुआ। उनके परिवार में दो बेटे कल्याण सिंह, सत्यभान सिंह गुर्जर और एक बेटी ममता हैं।
महात्मा गांधी की तस्वीर के सामने हथियार डाल बागी से दद्दा बन गए थे मोहर
महात्मा गांधी की तस्वीर के सामने हथियार डाल बागी से दद्दा बन गए थे मोहर सिंह, मुरैना के जौरा गांधी सेवा आश्रम में 14 अप्रैल 1972 को मोहर सिंह ने महात्मा गांधी की तस्वीर के सामने हथियार डाले थे। समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण (जयबाबू) की प्रेरणा से बागी जीवन छोड़ा तो दोबारा ताउम्र बीहड़ आकर्षित नहीं कर पाया। समाज की मुख्यधारा में वापस आए तो लोग उन्हें दद्दा कहकर पुकारने लगे। समाज, गरीबों के लिए खूब काम किया।
गरीबों की जमीन हथियाने वालों की हत्या कर बने दस्यु
भिंड़ के गोहद के जटपुरा गांव में जमीन हथियाने के लिए गरीबों को सताने वाले को गोलियों से छलनी कर 1958 में मोहर सिंह गुर्जर पुत्र भारत सिंह गुर्जर ने बीहड़ की राह पकड़ ली थी। समाज की मुख्यधारा में आने के बाद उन्होंने कई बार खुद बताया था कि वे बीहड़ में पहले से सक्रिय बागी गिरोह में शामिल होना चाहते थे, लेकिन गिरोह ने उन्हें नौसिखिया समझा। इसके बाद उन्होंने अपनी अलग राह बनाई। एक-एक कर 150 बागियों का गिरोह बनाया।
पुलिस के पास भी नहीं थे मोहर गिरोह जैसे हथियार
60 के दशक में मोहर सिंह का गिरोह सबसे ज्यादा खूंखार माना जाता था। गिरोह के पास आधुनिक हथियार थे, जो उस जमाने में पुलिस के पास भी नहीं होते थे। यही वजह है कि 1958 से 1972 तक 14 साल कटीले बीहड़ में एकछत्र राज करने के दौरान पुलिस कभी भी पूरी ताकत से मोहर का सामना नहीं कर पाई। मोहर सिंह गिरोह पर 60 के दशक में 12 लाख का इनाम था। खुद मोहर सिंह के सिर पर दो लाख का इनाम रहा। आत्मसमर्पण के दौरान उन्होंने एसएलआर, सेमी ऑटोमैटिक गन, 303 बोर चार रायफल, 4 एलएमजी, स्टेनगन, मार्क 5 रायफल सहित बड़ी संख्या में हथियार महात्मा गांधी की तस्वीर के सामने रखे थे।
डकैती नहीं डाली, अपहरण कर फिरौती वसूलते
मोहर सिंह गुर्जर कहते थे कि उनके गिरोह ने कभी डकैती नहीं डाली। डकैती के दौरान दूसरे गिरोह के सदस्य घर का तमाम सामान लूटते और महिलाओं को बुरी नजर से देखते थे, यह उन्हें कतई पसंद नहीं था। इसीलिए डकैती की बजाए अपहरण करते। फिरौती के रूप में लाखों रुपए वसूलते। बागी जीवन में महिलाओं और गरीबों की सदैव इज्जत की। गिरोह के सदस्यों को बता दिया गया था, जो महिलाओं को गलत नजर से देखेगा उसे गोली से उड़ा दिया जाएगा।
आठ साल खुली जेल में रहने के बाद मिला शांति का जीवन
आत्मसर्मण के बाद मोहर सिंह और उनके साथियों को ग्वालियर सेंट्रल जेल सहित अन्य जेलों में रखा गया। आठ साल खुली जेल में बिताने के बाद मोहर सिंह को सरकार की ओर से मेहगांव में जमीन मिली। बेटे कल्याण सिंह, सत्यभान सिंह गुर्जर और बेटी ममता को पढ़ाने के लिए वजीफा मिला।